श्री पद्मप्रभु जिन पूजा जैन धर्म में एक पवित्र अनुष्ठान है, जो छठे तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभु को समर्पित है। इस पूजा का उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करना, आंतरिक शांति प्राप्त करना, और मोक्ष की ओर अग्रसर होना है।
श्री पद्मप्रभु जिन पूजा का महत्व
भगवान पद्मप्रभु, जो अपने करुणा और धर्म के लिए पूजनीय हैं, उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने के लिए यह पूजा की जाती है। उनकी पूजा करने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और आत्मा में पवित्रता का संचार होता है।
महत्वपूर्ण लाभ:
- आत्मिक शुद्धि और मानसिक शांति।
- धार्मिक कर्तव्यों के प्रति जागरूकता।
- मोक्ष प्राप्ति की ओर मार्गदर्शन।
श्री पद्मप्रभु जिन पूजा की विधि
1. आवाहन (आमंत्रण)
- भगवान पद्मप्रभु का ध्यान और आवाहन करें। मंत्रों का उच्चारण करते हुए पूजा प्रारंभ करें।
2. अर्घ्य अर्पण (भेंट देना)
- पूजा सामग्री जैसे जल, चंदन, पुष्प, फल, और दीपक अर्पित करें।
- प्रत्येक अर्पण का धार्मिक महत्व है, जैसे:
- पुष्प: पवित्रता और प्रेम का प्रतीक।
- दीपक: अज्ञान का नाश और ज्ञान का प्रकाश।
3. स्तोत्र पाठ और भजन
- भगवान के गुणों और उनके जीवन की शिक्षाओं का स्मरण करते हुए स्तोत्र का पाठ करें।
- भक्ति भरे भजन गाएं, जो पूजा को और भी पवित्र बनाते हैं।
4. आरती और प्रार्थना
- आरती करें और दीपक घुमाते हुए भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करें।
- भगवान से क्षमा और मार्गदर्शन की प्रार्थना करें।
श्री पद्मप्रभु जिन पूजा के लाभ
- आध्यात्मिक शुद्धि:
पूजा के दौरान आत्मा की शुद्धि होती है, जिससे कर्मों का नाश होता है। - मानसिक शांति:
भगवान पद्मप्रभु के प्रति भक्ति से मानसिक तनाव कम होता है और आंतरिक शांति का अनुभव होता है। - मोक्ष प्राप्ति का मार्ग:
यह पूजा मोक्ष प्राप्ति की दिशा में सहायक होती है।
पूजा सामग्री
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री:
- जल और चंदन
- पुष्प और फल
- दीपक और धूप
- नैवेद्य (प्रसाद)
श्री पद्मप्रभु जिन पूजा के मंत्र (Mantra)
श्रीधर-नंदन पद्मप्रभ, वीतराग जिननाथ|
विघ्नहरण मंगलकरन, नमौं जोरि जुग-हाथ||
जन्म-महोत्सव के लिए, मिलकर सब सुरराज|
आये कौशाम्बी नगर, पद-पूजा के काज||
पद्मपुरी में पद्मप्रभ, प्रकटे प्रतिमा-रूप|
परम दिगम्बर शांतिमय, छवि साकार अनूप||
हम सब मिल करके यहाँ, प्रभु-पूजा के काज|
आह्वानन करते सुखद, कृपा करो महाराज||
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट (आहवानानम्)।
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (स्थापनम्)ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणं)।
(अष्टक)
क्षीरोदधि उज्ज्वल नीर, प्रासुक-गंध भरा|
कंचन-झारी में लेय, दीनी धार धरा||
बाड़ा के पद्म-जिनेश, मंगलरूप सही|
काटो सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही||
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१।
चंदन केशर कर्पूर, मिश्रित गंध धरौं|
शीतलता के हित देव, भव-आताप हरौं|
बाड़ा के पद्म-जिनेश, मंगलरूप सही|
काटो सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही||
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।२।
ले तंदुल अमल अखंड, थाली पूर्ण भरौं|
अक्षय-पद पावन-हेतु, हे प्रभु! पाप हरौं||
बाड़ा के पद्म-जिनेश, मंगलरूप सही|
काटो सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही||
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।३।
ले कमल केतकी बेल, पुष्प धरूँ आगे|
प्रभु सुनिये हमरी टेर, काम-व्यथा भागे||
बाड़ा के पद्म-जिनेश, मंगलरूप सही|
काटो सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही||
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।४।
नैवेद्य तुरत बनवाय, सुन्दर थाल सजा|
मम क्षुधारोग नश जाय, गाऊँ वाद्य बजा||
बाड़ा के पद्म-जिनेश, मंगलरूप सही|
काटो सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही||
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।५।
हो जगमग-जगमग ज्योति, सुन्दर अनियारी|
ले दीपक श्री जिनचन्द्र, मोह नशे भारी||
बाड़ा के पद्म-जिनेश, मंगलरूप सही|
काटो सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही||
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।६।
ले अगर कपूर सुगन्ध, चंदन गंध महा|
खेवत हौं प्रभु-ढिंग आज, आठों कर्म दहा||
बाड़ा के पद्म-जिनेश, मंगलरूप सही|
काटो सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही||
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।७।
श्रीफल बादाम सुलेय, केला आदि हरे|
फल पाऊँ शिवपद नाथ, अरपूँ मोद भरे||
बाड़ा के पद्म-जिनेश, मंगलरूप सही|
काटो सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही||
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।८।
जल चंदन अक्षत पुष्प, नेवज आदि मिला|
मैं अष्ट – द्रव्य से पूज, पाऊँ सिद्धशिला||
बाड़ा के पद्म-जिनेश, मंगलरूप सही|
काटो सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही||
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।९।
चरणों का अर्घ्य
(दोहा)
चरण-कमल श्री पद्म के, वंदौं मन-वच-काय|
अर्घ्य चढ़ाऊँ भाव से, कर्म नष्ट हो जाय||
ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्रस्य चरणाभ्यां अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(प्रतिमाजी की अप्रकट-अवस्था का अर्घ्य)
पृथ्वी में श्री पद्म की, पद्मासन आकार,
परम दिगम्बर शांतिमय, प्रतिमा भव्य अपार||
सौम्य शांत अति कांतिमय, निर्विकार साकार,
अष्ट-द्रव्य का अर्घ्य ले, पूजूँ विविध प्रकार||
बाड़ा के पद्म-जिनेश, मंगलरूप सही|
काटो सब क्लेश महेश, मेरी अर्ज यही||
ॐ ह्रीं भूमि-स्थित-अप्रकट श्रीपद्मप्रभ-जिनबिम्बाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक
(राग टप्पा)
श्री पद्मप्रभ जिनराज जी! मोहे राखो हो शरना।
माघ-कृष्ण-छठ में प्रभो, आये गर्भ-मँझार।
मात सुसीमा का जनम, किया सफल करतार।।
मोहे राखो हो शरना।
श्री पद्मप्रभ जिनराज जी! मोहे राखो हो शरना।I
ॐ ह्रीं माघ कृष्ण-षष्ठ्यां गर्भमंगल-प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।१।
कार्तिक-वदी-तेरह तिथी, प्रभू लियो अवतार |
देवों ने पूजा करी, हुआ मंगलाचार |
मोहे राखो हो शरना।I श्री पद्मप्रभ जिनराज जी! मोहे राखो हो शरना |
ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्ण-त्रयोदश्यां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।२।
कार्तिक-कृष्ण-त्रयोदशी, तृणवत् बन्धन तोड़|
तप धार्यो भगवान ने, मोहकर्म को मोड़||
मोहे राखो हो शरना|
श्री पद्मप्रभ जिनराज जी! मोहे राखो हो शरना||
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्ण-त्रयोदश्यां तपोमंगल-प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।३।
चैत्र-शुक्ल की पूर्णिमा उपज्यो केवलज्ञान|
भवसागर से पार हो, दियो भव्यजन ज्ञान||
मोहे राखो हो शरना|
श्री पद्मप्रभ जिनराज जी! मोहे राखो हो शरनाII
ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ल-पूर्णिमायां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।४।
फागुन-वदी-चतुर्थी को, मोक्ष गये भगवान्|
इन्द्र आय पूजा करी, मैं पूजौं धर ध्यानII
मोहे राखो हो शरना|
श्री पद्मप्रभ जिनराज जी! मोहे राखो हो शरना|
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्ण-चतुर्थ्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।
जयमाला
(दोहा)
चौतीसों अतिशय-सहित, बाड़ा के भगवान्|
जयमाला श्री-पद्म की, गाऊँ सुखद महान |१|
(पद्धरि छन्द)
जय पद्मनाथ परमात्मदेव, सुर जिनकी करते चरन-सेव|
जय पद्म पद्मप्रभु तन रसाल, जय-जय करते मुनि-मन-विशाल |२|
कौशाम्बी में तुम जन्म लीन, बाड़ा में बहु-अतिशय करीन|
इक जाट-पुत्र ने जमीं खोद, पाया तुमको होकर समोद |३|
सुनकर हर्षित हो भविक-वृंद, पूजा आकर की दु:ख-निकंद|
करते दु:खियों का दु:ख दूर, हो नष्ट प्रेतबाधा जरूर |४|
डाकिन शाकिन सब होय चूर्ण, अंधे हो जाते नेत्र-पूर्ण|
श्रीपाल सेठ अंजन सुचोर, तारे तुमने उनको विभोर |५|
अरु नकुल सर्प सीता समेत, तारे तुमने निजभक्त-हेत|
हे संकटमोचन भक्तपाल, हमको भी तारो गुणविशाल |६|
विनती करता हूँ बार-बार, होवे मेरा दु:ख क्षार-क्षार|
सब मीणा गूजर जाट जैन, आकर पूजें कर तृप्त नैन |७|
मन-वच-तन से पूजें जो कोय, पावें वे नर शिवसुख जु सोय|
ऐसी महिमा तेरी दयाल, अब हम पर भी होओ कृपाल ||८||
ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मेढ़ी में श्रीपद्म की, पूजा रची विशाल|
हुआ रोग तब नष्ट सब, बिनवे ‘छोटेलाल’||
पूजा-विधि जानूँ नहीं, नहिं जानूँ आह्वान|
भूल-चूक सब माफ कर, दया करो भगवान||
|।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।।
निष्कर्ष
श्री पद्मप्रभु जिन पूजा सच्चे हृदय और समर्पण के साथ करने से आत्मा की शुद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह पूजा भगवान पद्मप्रभु की शिक्षाओं से जुड़ने और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर बढ़ने का एक महत्वपूर्ण साधन है।
नोट: पूजा को पारंपरिक जैन रीति-रिवाजों और विधियों के अनुसार ही करें।
जैन धर्म की अन्य पूजाएँ जानें
जैन धर्म की अन्य पूजाओं की विधियों और लाभों को जानें।
सभी पूजाओं की जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें