श्री शीतलनाथ जी जिन पूजा – विधि और मंत्र (Vidhi and Mantra)

श्री शीतलनाथ जी जिन पूजा

परिचय: श्री शीतलनाथ जी का महत्व

श्री शीतलनाथ जी, जैन धर्म के 10वें तीर्थंकर, शीतलता और मोक्ष के प्रतीक हैं। उनकी पूजा से मन और आत्मा को शांति, स्थिरता, और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है। यह पूजा भक्तों को जीवन की कठिनाइयों से उबरने और मोक्ष प्राप्ति की दिशा में प्रेरित करती है।


श्री शीतलनाथ जी जिन पूजा की विधि (Vidhi)

  1. पूजा स्थल तैयार करें:
    • स्थान को गंगा जल या स्वच्छ जल से शुद्ध करें।
    • शांत और पवित्र वातावरण सुनिश्चित करें।
  2. भगवान की प्रतिमा स्थापित करें:
    • भगवान शीतलनाथ जी की प्रतिमा या चित्र को पवित्र स्थान पर रखें।
  3. पूजा सामग्री अर्पित करें:
    • जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य को क्रम से अर्पण करें।
  4. मंत्रोच्चार:
    • प्रत्येक सामग्री अर्पण के समय संबंधित मंत्रों का जाप करें।

श्री शीतलनाथ जी जिन पूजा के मंत्र (Mantra)

शीतलनाथ नमौं धरि हाथ, सु माथ जिन्हों भव गाथ मिटाये |
अच्युत तें च्युत मात सुनन्द के, नन्द भये पुर बद्दल आये ||
वंश इक्ष्वाकु कियो जिन भूषित, भव्यन को भव पार लगाये |
ऐसे कृपानिधि के पद पंकज, थापतु हौं हिय हर्ष बढ़ाये ||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्|
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः|
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्|

देवापगा सु वर वारि विशुद्ध लायो,
भृंगार हेम भरि भक्ति हिये बढ़ायो|
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|

श्रीखंड सार वर कुंकुम गारि लीनों |
कं संग स्वच्छ घिसि भक्ति हिये धरीनों ||
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|

मुक्ता-समान सित तंदुल सार राजे |
धारंत पुंज कलिकंज समस्त भाजें |
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|

श्री केतकी प्रमुख पुष्प अदोष लायो |
नौरंग जंग करि भृंग सु रंग पायो ||
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|

नैवेद्य सार चरु चारु संवारि लायो |
जांबूनद-प्रभृति भाजन शीश नायो ||
रागादिदोष मल मर्द्दन हेतु येवा |
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|

स्नेह प्रपूरित सुदीपक जोति राजे |
स्नेह प्रपूरित हिये जजतेऽघ भाजे ||
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|

कृष्णागरू प्रमुख गंध हुताश माहीं |
खेवौं तवाग्र वसुकर्म जरंत जाही ||
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|

निम्बाम्र कर्कटि सु दाड़िम आदि धारा|
सौवर्ण-गंध फल सार सुपक्व प्यारा||
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|

शुभ श्री-फलादि वसु प्रासुक द्रव्य साजे|
नाचे रचे मचत बज्जत सज्ज बाजे||
रागादिदोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|

पंचकल्याणक
आठैं वदी चैत सुगर्भ मांही, आये प्रभू मंगलरुप थाहीं |
सेवै शची मातु अनेक भेवा, चर्चौं सदा शीतलनाथ देवा ||
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाऽष्टम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |1|

श्री माघ की द्वादशि श्याम जायो, भूलोक में मंगल सार आयो |
शैलेन्द्र पै इन्द्र फनिन्द्र जज्जे, मैं ध्यान धारौं भवदुःख भज्जे ||
ॐ ह्रीं माघकृष्णा द्वादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |2|

श्री माघ की द्वादशि श्याम जानो, वैराग्य पायो भवभाव हानो |
ध्यायो चिदानन्द निवार मोहा, चर्चौं सदा चर्न निवारि कोहा ||
ॐ ह्रीं माघकृष्णा द्वादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |3|

चतुर्दशी पौष वदी सुहायो, ताही दिना केवल लब्धि पायो|
शोभै समोसृत्य बखानि धर्मं, चचौं सदा शीतल पर्म शर्मं ||
ॐ ह्रीं पौषकृष्णाचतुर्दश्यां केवल ज्ञानमंगलमंडिताय श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |4|

कुवार की आठैं शुद्ध बुद्धा, भये महा मोक्ष सरुप शुद्धा|
सम्मेद तें शीतलनाथ स्वामी, गुनाकरं ता सु पदं नमामी ||
ॐ ह्रीं आश्विनशुक्लाऽष्टम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |5|

जयमाला
आप अनंत गुनाकर राजे, वस्तुविकाशन भानु समाजे|
मैं यह जानि गही शरना है, मोह महारिपु को हरना है |1|

दोहाः- हेम वरन तन तुंग धनु-नव्वै अति अभिराम|
सुर तरु अंक निहारि पद, पुनि पुनि करौं प्रणाम |2|

जय शीतलनाथ जिनन्द वरं, भव दाह दवानल मेघझरं|
दुख-भुभृत-भंजन वज्र समं, भव सागर नागर-पोत-पमं |3|

कुह-मान-मयागद-लोभ हरं, अरि विघ्न गयंद मृगिंद वरं|
वृष-वारिधवृष्टन सृष्टिहितू, परदृष्टि विनाशन सुष्टु पितू |4|

समवस्रत संजुत राजतु हो, उपमा अभिराम विराजतु हो|
वर बारह भेद सभा थित को, तित धर्म बखानि कियो हित को |5|

पहले महि श्री गणराज रजैं, दुतिये महि कल्पसुरी जु सजैं|
त्रितिये गणनी गुन भूरि धरैं, चवथे तिय जोतिष जोति भरैं |6|

तिय-विंतरनी पन में गनिये, छह में भुवनेसुर तिय भनिये|
भुवनेश दशों थित सत्तम हैं, वसु-विंतर उत्तम हैं |7|

नव में नभजोतिष पंच भरे, दश में दिविदेव समस्त खरे|
नरवृन्द इकादश में निवसें, अरु बारह में पशु सर्व लसें |8|

तजि वैर, प्रमोद धरें सब ही, समता रस मग्न लसें तब ही|
धुनि दिव्य सुनें तजि मोहमलं, गनराज असी धरि ज्ञानबलं |9|

सबके हित तत्त्व बखान करें, करुना-मन-रंजित शर्म भरें|
वरने षटद्रव्य तनें जितने, वर भेद विराजतु हैं तितने |10|

पुनि ध्यान उभै शिवहेत मुना, इक धर्म दुती सुकलं अधुना|
तित धर्म सुध्यान तणों गुनियो, दशभेद लखे भ्रम को हनियो |11|

पहलोरि नाश अपाय सही, दुतियो जिन बैन उपाया गही|
त्रिति जीवविषैं निजध्यावन है, चवथो सु अजीव रमावन है |12|

पनमों सु उदै बलटारन है, छहमों अरि-राग-निवारन है|
भव त्यागन चिंतन सप्तम है, वसुमों जितलोभ न आतम है |13|

नवमों जिन की धुनि सीस धरे, दशमों जिनभाषित हेत करे|
इमि धर्म तणों दश भेद भन्यो, पुनि शुक्लतणो चदु येम गन्यो |14|

सुपृथक्त-वितर्क-विचार सही, सुइकत्व-वितर्क-विचार गही|
पुनि सूक्ष्मक्रिया-प्रतिपात कही, विपरीत-क्रिया-निरवृत्त लही |15|

इन आदिक सर्व प्रकाश कियो, भवि जीवनको शिव स्वर्ग दियो|
पुनि मोक्षविहार कियो जिनजी, सुखसागर मग्न चिरं गुनजी |16|

अब मैं शरना पकरी तुमरी, सुधि लेहु दयानिधि जी हमरी|
भव व्याधि निवार करो अब ही, मति ढील करो सुख द्यो सब ही |17|

शीतल जिन ध्याऊं भगति बढ़ाऊं, ज्यों रतनत्रय निधि पाऊं|
भवदंद नशाऊं शिवथल जाऊं, फेर न भव वन में आऊं |18|

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय महार्घम् ।

दिढ़रथ सुत श्रीमान् पंचकल्याणक धारी,
तिन पद जुगपद्म जो जजै भक्तिधारी |
सहजसुख धन धान्य, दीर्घ सौभाग्य पावे,
अनुक्रम अरि दाहै, मोक्ष को सो सिधावै ||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)

श्री शीतलनाथ जी पूजा से मिलने वाले लाभ

  1. शांति और स्थिरता: भगवान शीतलनाथ जी की कृपा से मन और आत्मा को स्थिरता और शांति मिलती है।
  2. विघ्न-बाधाओं का नाश: पूजा से जीवन की कठिनाइयाँ और बाधाएँ समाप्त होती हैं।
  3. आध्यात्मिक उन्नति: आत्मा को शुद्ध कर भक्ति और सन्मति को प्रोत्साहित करती है।
  4. मोक्ष प्राप्ति का मार्ग: यह पूजा मोक्ष प्राप्ति की दिशा में मार्गदर्शक होती है।

पूजा सामग्री की सूची

  • जल: स्नान और शुद्धिकरण के लिए।
  • चंदन: भगवान को अर्पित करने के लिए।
  • पुष्प: सुगंधित फूल।
  • धूप और दीपक: पूजा में उपयोग के लिए।
  • नैवेद्य: फल, मिठाई, और अन्य शुद्ध खाद्य पदार्थ।

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Author: Jain Sattva
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